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ज्ञान और आध्यात्मिकता का उत्सव: इस बार 10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा

ज्ञान और आध्यात्मिकता का उत्सव: इस बार 10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा”

 

गुरु पूर्णिमा: वेदव्यास से बुद्ध तक, ज्ञान परंपरा का पर्व 

           महामंडलेश्वर स्वामी डां उमाकान्तानन्द सरस्वती जी महाराज

लेखक: प्रभाकर मिश्र

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गुरु पूर्णिमा पर अबकी बार बहुत ही अद्भुत संयोग बना है। दरअसल इस बार गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुवार है। गुरुवार 10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का पर्व इस बार मनाया जाएगा।भारतवर्ष में सदियों से गुरु को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। “गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाय? जैसे दोहों ने यह बात साबित की है कि हमारे यहां गुरु का स्थान ईश्वर से भी पहले माना गया है। इसी गुरु-शिष्य परंपरा को सम्मान देने का पर्व है – गुरु पूर्णिमा। आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाने वाला यह पर्व न केवल धर्म और परंपरा से जुड़ा है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक मूल्यों, शिक्षा और अध्यात्म की विरासत का भी प्रतीक है।व्यास पूर्णिमा: आदिगुरु की जयंती गुरु पूर्णिमा का सबसे पुराना और महत्वपूर्ण संदर्भ महर्षि वेदव्यास से जुड़ा है। वे ही थे जिन्होंने वेदों का संकलन किया, उन्हें चार भागों में विभाजित किया, और मानव इतिहास का सबसे बड़ा ग्रंथ महाभारत रचा। उन्होंने 18 पुराणों की रचना कर हिंदू धर्म की बुनियाद को शब्दों में ढाला।मान्यता है कि महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था। इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन शिष्य अपने-अपने गुरुओं को श्रद्धा और भक्ति से नमन करते हैं।

बुद्ध का पहला उपदेश भी इसी दिन

बौद्ध परंपरा में भी गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान गौतम बुद्ध ने सारनाथ में इसी दिन अपने पांच शिष्यों को पहला उपदेश दिया था। इसे ही धम्मचक्क प्रवर्तन कहा जाता है यानी धर्मचक्र को गति देना। इस दिन को बौद्ध अनुयायी बड़े उत्साह और श्रद्धा से मनाते हैं। देश-विदेश में विशेष सत्संग और उपदेशों का आयोजन होता है।गुरु: केवल शिक्षक नहीं, संपूर्ण मार्गदर्शक भारतीय संस्कृति में गुरु को केवल एक शिक्षक नहीं माना गया, बल्कि वह जीवन के हर मोड़ पर मार्गदर्शन देने वाला पथप्रदर्शक होता है। राम के जीवन में वशिष्ठ, कृष्ण के जीवन में संदीपनि, अर्जुन के लिए द्रोणाचार्य और चाणक्य जैसे गुरुओं ने इतिहास की दिशा बदल दी। आज भी, जब तकनीक के इस युग में शिक्षा ऑनलाइन हो रही है, तब भी गुरु का स्थान अपरिवर्तनीय बना हुआ है। स्कूलों, कॉलेजों और आश्रमों में इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। छात्र अपने शिक्षकों को फूल, कार्ड, और संदेशों से सम्मान देते हैं। आधुनिक गुरु: योग से लेकर डिजिटल तक आज गुरु केवल आध्यात्मिक या शिक्षण संस्थाओं तक सीमित नहीं हैं। योग गुरु, जीवन कोच, आध्यात्मिक मार्गदर्शक, और यहां तक कि डिजिटल मेंटर भी इस श्रेणी में आते हैं। इस दिन सोशल मीडिया पर भी लाखों लोग अपने-अपने गुरुओं को याद कर पोस्ट साझा करते हैं। संस्कारों की जड़ें मजबूत करता है यह पर्व गुरु पूर्णिमा सिर्फ एक दिन नहीं है यह एक भाव है, एक परंपरा है, एक संस्कार है। यह हमें याद दिलाता है कि जीवन में सच्चा ज्ञान केवल किताब से नहीं होता, बल्कि अनुभव, दृष्टिकोण और मार्गदर्शन से भी आता है।गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति की आत्मा को दर्शाने वाला पर्व है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि चाहे हम कितनी भी ऊंचाइयों तक पहुंच जाएं, हमारे भीतर विनम्रता और आभार का भाव बना रहना चाहिए अपने गुरुओं के लिए जिन्होंने हमें सही राह दिखाई है।

 

“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।

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